थांनैं कियां मिळूं?
हेताळू!
थूं है कठै?
कठै है बासौ?
पूछै म्हारौ मन संकाळू!
थांनै कियां मिळूं?
हेताळू!
दीसै है थूं सुभट जावतो
पण थारा पग पड़्या न दीसै!
किण दिस सोझै थनै पारखी
इसड़ा जीवड़ा घड़्या न दीसै!
परतख तो
दीसै ई कोनी
सपनां में आ जाय लाजाळू!
थांनै कियां मिळूं?
हेताळू!
मेळो मच्यो कूंट च्यारूं ई
हाका-बोय होय री गै’री!
रमतो-रमतो रूस जा छिपै
किण खूंणै कै ठा मन-लहरी!
म्हूं तो मेळा
में ई सोधूं
सै साथै रमती उळझालूं!
थांनै कियां मिळूं?
हेताळू!
थारा तो पग खुला-खुला
पण म्हारा पग बंधिया पायल सूं।
थां दिस कोई न उठै आंगळी
पण म्हूं ड़रूं दीठ घायल सूं!
मन में तो
उछरंग घणों
आंखडियां सू भीजै है साळू!
थांनै कियां मिळूं?
हेताळू!
म्हूं तो हारी सोझ-सोझ नैं
तिरसां मरगी, झरै पसेवो।
अब तो जद ई जक पावूं जद
हेताळू? म्हारी सुध लेवो!
कांटा-कसक
कांकरा रड़कै
सरणै पड़ी गारबा-गाळू!
थांनै कियां मिळूं?
हेताळू!