दिन?

म्हैं बगाई

सिरांथै हेटै सूं काढ’र

आभै में किरणां री गींडी!

किरणां रो सूत

म्हैं नित सुळझाऊं

कै किण तांतण रै तांण

कद पुगूंला थारै तांई?

म्हैं जद थाक’र

सूत सिंराथै धर दूं

रात पड़ै।

टीपणो?

टपकै सालोसाल

ओळ्यूं री आंख सूं

अेक आंसू!

आंसुवां री सिमरणी

म्हारी कविता!

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : मालचन्द तिवाड़ी ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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