‌अेक टैम हतौ नानकड्डु घोर नै

वाड़ा घणा मौटा

सोपं बाँधवा, सारा पूरा सारू

अेक ढ़ार, अेक पठार, अेक रसोडू

अर घणूँ कऊँ तौ अेक अंधारी ओळी

पण अेणा टैमें मानवी ना मन मअें

आक्खू जगत समाई जातू हतू

अवै टैम बदलाईग्यौ

वात बदली, मनख नी जात बदली

पैरवू ओढ़वू अर अेम कही दौ के

आक्खो जमारौ बदलाईग्यौ

तौ कम है

अवै टापरँ बणीग्यं बंगला

मौटा मौटा बेडरूम,

फारम हाऊस, लॉन, ड्राईग रूम,

गेस्ट रूम, कीड्स रूम

अर अजी बर्‌ये थाक हुं हुं क्हैवाय

पण परिवार साथै ब्हैवा

कोय रूम न्हें हतौ अवै

नती अवै मन पैल वजू

अेक खोणा मअें पड्यू है

परेम वगर नूं मर्‌यू मर्‌यू

अवै आणा टैम नूं मनख

अवै आणा टैम नूं मनख

धन थकी मालामाल है पण

मन थकी घणूं गरीब घणूं’ज गरीब।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : राम पंचाल भारतीय ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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