कठै लुकग्यो

वो रूपाळो टाबरपणो

जिको रमावतो

आखै दिन कूरिया

बणावतो घूरी

गळ, आटो अर तेल मांग'र

बणावतो सीरो

गळी री ब्यायोड़ी गंडकी सारू।

कठै गमगी बै किलकारियां

जिकी चीऽऽ चाँऽऽ (मारदड़ी)

लुक मीचणी,

काठ कठौवो लकड़ी रो बउवो खेलतां

गांव रै गुवाड़ में गूंजती।

'आप-आप रै घरां जावो

कागा-रोटी खाता जावो' गीरता

कूदता-फांदता अर रमता

टाबर

किणी ठौड़ दिसै

तो म्हानै भी बताइज्यो।

तीन डंडिया

बैट-गिंडी अर

अेक टी.वी.

म्हारै गांव रा

सगळा रमतिया लीलग्या।

स्रोत
  • पोथी : उजास रा सुपना ,
  • सिरजक : शिवराज भारतीय ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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