सूरज नै कुण कतल कर दियो,

भरौ दुफारै में।

अर कातिल आय लुक्यो बैठ्यो है,

थां रै म्हां रै में।

आज घटावां मिल

आँधी सूं

कांई साजिस रचगी?

कठै बिलमग्यो जाय

उजाळै रै

कांई जचगी?

कीं सूं डरी चानणी

दापळ

बैठी महलां में

अेक भैंस सगळी भैस्या नै

करगी गारै में।

कुण कतरी है पाँख?

कल्पना

उडणै सूं रैयगी।

झड़ग्या काचा पान

पून कोई जहरीली बैयगी।

मूं’डो सीम मानवी बैठ्या

कानां लियां आँगळी

बेरो नीं के सोधै

आँख्यां मींच अँधारै में।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मंगत बादल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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