पड़ै घणो ठेंठार
ओढ रजाई बादळ री
मुंह काढै सूरज माड़ो-सो!
सिंझ्या बाळी आग
पटक रजाई दूर
बैठ्यो धूणी तापै सूरज...
चालै ठंडी पून
गुदळकै सी मार मुंह-ढाटो
आभै भीतर लुकग्यो सूरज!
ढूंढ्यो साथण रात
चांद- च्यानणो लियां हाथ में
दिनुगै जातां लाद्यो सूरज॥