सुन्दरता री जद हुंवती निंदा देखी,

पछै टुट्योड़ी चावना नै देखी।

रीसाळै सिव री तण्योड़ी भृकुटि देखी,

मन री इच्छा नै बळती देखी।

पछै चंडी खुद नै खुद देखी,

कुदरत रा ठण्डा-ताता जुद्ध देख्या।

मिरतुंजय नै तप में देख्यो,

पछै मुंडै आगै सिव नै देख्यो॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : अनिता सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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