सुणजौ भाई, सुणजौ भाई

बड़ी कुजरबी बैळा आई

धन—दौलत री खातर मरग्या

काका—बाबा, भाई—भाई

घर में अब डरता रैवै

बूढा—ठाडा लोग—लुगाई

सुणजौ भाई

बडी कुजरबी बैळा आई

गहणां पैर निकळती घर सूं

पैलां अंगै डर भो नीं हौ

सरै बजारां आज लुटीजै

छीना—झपटी चैन तुड़ीजै

अैसा अैसा चोर अठै कै

चोर लेवै आंख्यां रौ काजळ

ईश्वर भी अठै करै दुहाई

सुणजौ भाई

बड़ी कुजरबी बैळा आई

धन दहेज रो भारी लालच

परण्योड़ी ने तुळी बतावै

मिनखपणां रा दुसमी आं नै

लाज—सरम अंगै नीं आवै

जिण आगै फरियाद करां वै

अपराधी हाथां बिक जावै

पाछै कूवौ, आगै खाई

सुणजौ भाई

बड़ी कुजरबी बैळा आई।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी-मार्च ,
  • सिरजक : विमला भंडारी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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