उगतो सूरज कैवे गाथा

कट गई रे काळी रातां

सुणै डावड़ा समै री बातां

करतो रैवै कोसिस सिदा

सफल हो जासी थारी मेहणत

जको होयो वो तो बीतगो भायां

रात गई रातै रै, भूलजो सगळी बातां

नूवों सुवेरो आवै कर उण री बातां

ऊगतो सूरज कैवे गाथा

कट गई रे सारी काळी रातां

ऊगतो सूरज कैवै बातां...।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (दूजो सप्तक) ,
  • सिरजक : उगमसिंह राजपुरोहित 'दिलीप' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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