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रगत-रंजित रेत

जिकी अबै मूसाण लाग रैयी है,

थोड़ी इज ताळ पै'ली

उतरी ही अठै

सूरज री सोनल किरणां

चिड़कल्यां चैंचाई ही

अर फूलां री खिलखिलाहट साथै

कळियां

आपरे कंवळै कण्ठां

भैरवी गाई ही

ताण्डव निरत तो पछै

जिण नै देख’र

चिड़कल्यां सैमगी,

फूलां री मुस्कान

रुदन बणगी

अर भोर री ललाई

अखण्ड आभै में

बारूद रै

स्याह तंबू सी तणगी

जिकी लो’ई सी लाल रेत

मुरदां रो मुसाण

अर भूतां रो

रै’वास लाग रैयी है

फकत थोड़ी ताळ पै'ली

प्रकृति रै हिंगळू होठां रो

हास लाग रैयी ही

स्रोत
  • पोथी : छप्पनियां हेला ,
  • सिरजक : जनकराज पारीक ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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