नीठ आखी रात काटी, जागतां-ई-जागतां!

आखतौ होग्यौ, विचारां में गम्योड़ौ रैयग्यौ!

नींद रा सुपनां कठै? अब जागता-जंजाळ है!

आंख में ऊभौ जगत, कुणसो अजब बेताळ है?

पारधी हर-अेक नीजर, हर-जणो मिरगौ अठै!

है अचम्भौ! मानखौ नी दीठ में आवै कठै!

जेवड़ी जुग री तणीजै, खांचतां-ई-खांचतां!

रात री सून्याड़ रै कांठै रम्योड़ौ रैयग्यौ!

आखतौ होग्यौ, विचारां में गम्योड़ौ रैयग्यौ!

सांप री ज्यूं आंट-उपरां-आंट खायां चालणौ!

जीभ रो विष, बात का बेबात-ई बस घालणौ!

जोंवतौ रैग्यौ सुभावां री अनोखी बानगी!

नींद रै बदळे, चली आयी, इयां हैरानगी!

खूटगी पोथी परायी, बांचतां-ई-बांचतां!

आखरां रै बीच ऊभौ, मैं जम्योड़ौ रैयग्यौ!

आखतौ होग्यौ, विचारां में गम्योड़ौ रैयग्यो!

जिन्दगानी री नद्यां री भाज रैयी धार है!

लहर-उपरां-लहर चालै, अन्त है नी पार है!

सामनै ऊभौ समंदर, मौत रौ गम्भीर है!

मौत आगे, जिन्दगी, बस, नांवसीक लकीर है!

निकळ जावै, हाथ सूं बा दाबतां-ई दाबतां!

चिन्तणा चित चैंठगी, अर मैं भम्योड़ो रैयग्यौ!

आखतौ होग्यौ, विचारां में गम्योड़ौ रैयग्यौ!

आ, अजूबां री अनोखी, अेक पंगतवार है!

आदमी लूंठौ घणौ, पण आदमी लाचार है!

ओळखूं किण रूप नै, किण रूप रा आकार नै?

सार मानूं : मानखै री जीत नै, का हार नै?

देख रैयौ जीत नै तौ नाचतां-ई-नाचतां!

हार नै देखी, जणा मैं सिर-नम्योड़ौ रैयग्यौ!

आखतौ होग्यौ, विचारां में गम्योड़ौ रैयग्यौ!

अेक-उपरां-अेक, पड़दौ भरम रो खुलतौ गयौ!

ओड़ तौ आयौ कोई, मैं घणौ घुळतौ गयौ!

अरथ बांचण नै कर्यो, पण अरथ ऊंडौ डूबग्यौ!

अेक भी लाध्यौ नूवौ भेद, अर में ऊबग्यौ!

आदमी क्यूं तूट रैयो, भाजतां-ई भाजतां?

तूटग्यौ क्यूं बो, जिकौ मारग थम्योड़ौ रैयग्यौ?

आखतौ होग्यौ, विचारां में गम्योड़ौ रैयग्यौ!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : किशोर कल्पनाकान्त ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण
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