उडार होवणो तो हर कोई चावै

पण आभै पूगण सारू

चाईजै जमीं रो जोर

कोरी पांख्यां फड़फड़ायां

जे पूगीजतो आभै

तो कमेड़ी पूगती सै सूं पैली

जकां रा पग थर-थर धूजै

बां कनै कठै जमीं रो जोर?

इण जोर नैं पावण खातर

खपणो पड़ै बीज री तर्‌यां,

मिलाणो पड़ै माटी सूं मन,

सूंपणो पड़ै खुद रो तन,

गळणो पड़ै अनाम ऊंडो,

सैवणी पड़ै धरा उमस!

आभौ नाम है ऊंचाई रो

अर ऊंचाई री माप है जमीं

ईज कारण है कै

जका जड़ां जमीं में राखता थकां

आभै री ऊंचाई पावै

उणां नै आखौ संसार

लुळ-लुळ धोक लगावै।

स्रोत
  • पोथी : मुळकै है कविता ,
  • सिरजक : प्रकाशदान चारण ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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