मुधरी मुळक रळा जोगीजी।

वाणी में भर हेत जोगीजी॥

जोग बणावै आत्मसरूप।

सागी बिरम बणै जोगीजी॥

काम-क्रोध जीत जोगीजी।

घट में ग्यान भरै जोगीजी॥

सरबलोक नै ईसर जाणै।

धरम-धणी सांचो जोगीजी॥

जूण-जुद्ध नै जीत जोगीजी।

खुद’ई खुद रो मीत जोगीजी॥

ठावी-ठौड़, ठिकाणै पूगै।

सांचो मारग जाण जोगजी॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : अनिता सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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