चैत री बेरुत बिरखा में

म्हारी देही धूजै

ऊभा हो जावै अणचींती रा रुंआड़ा

म्हूं किणीं मा रा सुपना

किणीं बैन रै हाथां री पिळास

किरसा रै छऊ मईना री किरस

म्हैं खेत में ऊभी

खळां में पड़ी हाड़ी री फसल।

स्रोत
  • पोथी : तीजो थार-सप्तक ,
  • सिरजक : पृथ्वी परिहार ,
  • संपादक : ओम पुरोहित 'कागद' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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