आंधो होके चाल मती मन,

चेत बावळा!

जे आखड़के टकराग्यो

जुग री चोखट सूं,

तो माथै में

बंबूळो बँधता यूं देर नहीं लागैली!

सावळचेतो होके

आँख्यां नै तरेड़के

चाल बावळा!

आज,

कुचाळां रो खाडो गहरो है आगै!

औग बेगसूं चलतै पग में

चाकी सी बाँध्योड़ी सागै!

चोखट भीतर घोर अँधेरो,

छल-छिदर कर राख्यो डेरो!

अँवळी-सँवळी

आँटी-टेढी

उळझ्योड़ी बातां रो फेरो!

चेत बावळा!

जग-प्रवेश होतां ही

नयो चांनणो आसी!

बुझ ज्यावैलो अंधकार रो

सपनो बासी!

दुरळ मचाई घणी

कमीणी निजरां बासी!

खोल किंवाड़ी—

नीं तो ले चूळियो उतार—

ऊँधी-मूंदी बातां पर

भाटो दे मार!

आखड़ मत मन,

चेत बावळा!

स्रोत
  • पोथी : किरत्याँ ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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