कीं नीं कैवै बा

देखती रैवै टकटकी लगा’र

पुरस्योड़ी थाळी नैं

पसवाड़ै राख

अर करती रैवै

आपरै सांवरियै सूं

अरज म्हारै खातर

म्हैं जद तांई

घरां नीं पूगूं

म्हारी मां

करती रैवै उजाळो,

म्हारै मारग

जगावती रैवै आपरी

अरदास रा दीवा।

स्रोत
  • पोथी : मन रो सरणाटो ,
  • सिरजक : इरशाद अज़ीज़ ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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