जाणूं अठै सरणाटौ क्यूं है,

छाती माथलो भाटौ क्यूं है।

भीड़ नीं मावै सड़कां माथै,

मिनखां रो पण घाटौ क्यूं है।

घिन री बही में बट्टा नीं है,

हेत रै खातै काटौ क्यूं है।

कमाऊ बळद भूखा खड़्या,

फंडर खोलां नै चाटौ क्यूं है।

कूड़-कपट नै छूट मोकळी,

सांच रै मुंडागै पाटौ क्यूं है।

जिका करै नीं राज खोरसौ,

बां रै सुखां रौ लाटौ क्यूं है।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : राजू सारसर राज ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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