राजू सारसर 'राज' जलम: 1977 bikaner कविता अर कहाणी में बरोबर लेखन। कहाणी संग्रे 'जूती' सूं ठावी पिछाण।
अणबसी भव री बाट भींत बोल चिड़कली बोल छाती माथै भाटौ क्यूं है? हिवडै री हूक इंकलाब री आस में लोकराज रात बावळी राड़ सोयां अबै सरै नीं थां बिन