के हुवै अरथ बता कवी हुवण रो?

अरथ है ईंरो, सागीड़ो समझणो,

घण कंवळी काया री चामड़ी सूंतणो

दूजां नैं आपरै रगत में रंगणो।

अरथ हुवै मुगत-मन गीत रो देवणो,

धपावू, पाछो लेवण नैं बैपरवा।

कोयलड़ी—इण रो मोल कईं नईं;

अेक फकत गीत कनैं अर बस वा।

अर बो सूवटियो, जिको नकलां करै,

हीण अर दीण अेक जिनस सो लखावै

थारली निजरी ऊस हुवै रागणी,

चावै ज्यूं ओखो गीत तूं गावै।

कुरान, मदड़ै पर रोकां लगावती

खणां पड़ी पीळ-पट्ट पड़णी चावै,

सुरा तो कवी रो दरद मेटै परो,

जद बो बैठ’र रगतड़ो बैवावै।

जद बो आपरी प्यारी सूं मिलण टुर

अर दूजां री बावां में उणनैं पावै,

आपरी कटारी बो बावै नईं जे सुरा

जादू बण उणरै माथै चढ़ जावै।

बदळ में, ईसको जबरो घणो हुवै

दूणो बधै जद घर बो जावै

“रुळपट ज्यूं जीस्यूं अर मरस्यूं मंगतै ज्यूं

कवी री दुरासीसां कदे ना सतावै”।

स्रोत
  • पोथी : लेनिन काव्य कुसुमांजळी ,
  • सिरजक : सर्गेइ येसेनिन ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा (जयपुर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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