हरियाळी सिंगार करायौ,

पर्वत-झरना-घाट्यां नै।

म्हनै सोळमौ सावण, बालम

भणरचा सोळा पाट्यां ने॥

इन्दर ताण्यो धनुष गगन में,

मगन मोरणी नाची है।

मैंदी लिखिया धरम-मरम सूं,

नरम हथेळ्यां राची है॥

बालम! थांनै मालम कौनी,

यां ने कद जांचौला!

परदेशां में कतरा दिन तक,

कोरा कागज बांचौला?

कई करू म्हूं रखड़ी-नथड़ी,

झेला-झूमर-आट्यां नै।

म्हनै सोलमौ सावण, बालम-

भणरचा सोळा पाट्यांनै॥

भोळा बालम! भरी जवानी,

लाख रिप्यां री पोथी है।

जिणरै सामै कागज ऊपर,

छपी किताबां थोथी है॥

जुगां-जुगां रा गूढ़ प्रश्न नै,

बालम जी! थां सलटी नीं।

उमर सँवारी इण पोथी नै,

इण रा पन्ना पलटौ नीं॥

पलटै है ज्यूं पान तमोळी,

बामण पलटै वाट्यां नै।

म्हने सोळमौ सावण, बालम

भणरया सोळा पाट्यां नै।

चिड़ियां चुग-चुग चाँच लड़ावे,

चातक तिरस बुझावै है।

डाळ-डाळ पै तोता मैना,

किस्सा रोज सुणावै है॥

ज्यूं नैनां में नींद धुळे हे,

हिवड़ा में घुळ जावौ नीं।

ढाई आखर में म्हूं उळभी,

बालम! या सुळभावौ नीं॥

मणिहारो सुळझावै उळझो,

ज्यूं रेशम की गांठ्यां नै।

म्हनै सोळमी सावण, बालम

भणरया सोळा पाट्यां ने॥

स्रोत
  • पोथी : पसरती पगडंड्यां ,
  • सिरजक : शिव 'मृदुल' ,
  • प्रकाशक : चयन प्रकाशन, बीकानेर
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