घणा दिन हुया रोया कोनी

घणा दिन हुया हंस्या कोनी,

जड़ता,

खुद सूं अणजाणपणौ

फेर भी जीवूँ तो हूँ।

सगळी रीत भांत करतौ,

करतब निभावन्तौ,

सगळां रा मन राखतौ,

हालूं तो हूँ चीलां माथै।

कदैई-कदैई लागै

के म्हैं जीवूं हूँ

या के चाबी सूं चालतौ रमतियौ

पिछाण सकूं कोनी

के हुयग्यौ है मन्नै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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