ओळू आई...

मां रै सागै थांरी

करती ही हथाई

फेर जावती लाज

जद मां बतावती

सासरियै री कोई बात....।

म्हनैं पाछी

मधरै वायरै-सी

ओळू आई...

बैनां चिड़ावती,

हंसती अर कैवती

लाडेसर जीजी!

थारो ब्यांव करांला

कैर रै उपराळै बैठा....।

फेर कठै सूं

थाक्योड़ी-सी म्हनैं

ओळू आई....

बिना खोट, क्यूं थे

भेज दियो संदेसो

कै नी आवैली

म्हारै मांढे ऊपरां

थारी बरात....।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : सिया चौधरी ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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