छपनां रा काळ मांय
ररूंखां रा छोडा खाय
गोबर सूं दाणां बीण
दिन तोड़तौ
म्हारा गांव
कांई इण सारूं जीवतौ रह्यौ थूं
क’ रासण कारट मांय
थारौ नांव लिखीजजा
अर
भूगोल रा किणी नकसा मांय
थूं मिण्डी बण दरजीजजा
चमोतरा रा पिलेग सूं
कांई इण खातर लड्यौ
क’ वां दिनां खाटली सारूं
च्यार आदमी नीं मिलता
अर आज लोकाचार’र सिडी तोकण नै
मिनखां री मोकळाई व्हे जा
वा किसी हूंस ही
किसी हीयै री हुरड़ाई सूं जीवतौ है
अजतांई
कांई और देखण नै
क’ खास लोगां रै घरै
अजतांई
नायणां धोवती रै पोतड़ा
क’ वै लोग तोकता रैवै
अेंठवाड़ा बरतण-बासण
क’ वै लोक तोकता रैवै
माथा माथै मेलौ
क’ भीलां रा वाड़ा में जलमतांई
साथै बंधजा हाळिपा रौ काम
क’ थारी उली’र पैली भागळां व्हे जा
वियतनांव
पडूत्तर दै—
गुमसुम ऊभण सूं काम नीं चालै
कांई इण भवीस रै कामण
गूंथी थूं सोनल-सुपनां री लड़ां
अर लड़ियौ
दुसमी अबखायां सूं
नीं...नीं...नीं
थनै तौ फगत लादणौ हौ यो बोझ
म्हारै थाकल खांधै
तौ ले देख
म्हैं अजतांई फिरूं हूं इण नै तोकयां
ऊजड़ पगडांडी रा अळू झाड़ में
औ सोचतौ
क’ कित्ता सोरा व्हे जाता
थूं अर म्हैं
ज्यो थूं छपनां में नीं तौ चमोतरा में
मर जातौ
नीं रखेळतौ म्हैं थारौ दाळीदर
इत्ता जतन सूं
नीं पाळतौ म्हारै जीवा सारूं
अेक मीठौ भरम
माथा सूं काढ कळबळता सवाल
हर अेक सवाल रे साम्हीं
नचीतौ होय झिटक देवतौ गाभा
अर दिखाय देवतौ नागौ डील
औ देखौ मिनखां
म्हारै साथै कोनी—
कोई पळकती संस्कृति
म्हैं निसंस्कारू जलमियौ हूं
इण सून्याड़ रा गरभ सूं
अर अेकलौ ऊभौ हूं
छळछन्दां रा गोरखधंधा सूं अळगौ
भूत-भवीस री कार सूं बारै
वरतमान री बळबळती छाती माथै
भलां ई डसजा अंधारौ
इण जमीं रा च्यारूं खूंट
म्हैं म्हारी ओळखाण
बळती राख सकूं
पांगळा भूगोल-इतियास री नाज रो
औलाद कोनी
म्हैं इण अंधारा री रग-रग सूं वाकिब
इण री पूग सूं बारै राख सकूं
म्हैं म्हारा’र सगळा म्हारै जैड़ा रै
जीवता रैवा री हूंस रा संस्कार-विहूणा
गीत
क’ ज्यां मांय जीवै
सबदां परबारा अरथ
वां अरथां नै नीं लील सकै अंधारौ
नीं काट सकै नंदी रौ घैघाट
नीं अलोप सकै डूंजां रौ कटाव
नीं बाळ सकै जंगळ-दर-जंगल
पसरती लाय
नीं उडाय सकै वां अरथां रा रंग
सूरज री पळापळ किरणां
पण सुण
या म्हारी सबसूं लांठी अबखाई
आं मांरगां
क’ म्हैं थारी निरभागी कूंख सूं जलम लेय
थांरी ठाडी बेकळू रेत में मोटौ व्हियौ
अर वा ठाडोळाई
वापरगी म्हारै रूं-रूं मांय
नीतर कणाकलौ
छिटकाय खांधा माथलौ बोझ
व्हे जातौ थारा सूं अळगौ
अर गढ लेवतौ अेक नूंवी
अबोट ओळखाण
जिण मांय नीं व्हेतौ जात-पांत रौ
भरमजाळ
आदमी नीं ओळखीजतौ उण रै रंग सूं
नीं पूजीजतौ आदमी उण री औकात लारै
नीं व्हेता किणी ई खूंजा में
धरम रा नाग
नीं व्हेता न्यारा-न्यारा
टटपूंजिया ईसकू ईसवर
आदमी फगत आदमी व्हेतौ
अर ओळखीजतौ
औ आदमी रै आदमी नीं व्हेण रौ दरद
म्हनै रैय-रैय दमजाळै
कठैई अेकण ठौड़ नीं ढबण दै
म्हारा घण हेताळू, रूड़ा दरद
म्हारा गांव
नीं थनै गाड सकूं, नीं बाळ सकूं
नीं हेज सकूं, नीं पाळ सकूं
ज्यूं-ज्यूं उतरूं ऊंडौ
थारै मांय
फगत थारी जूनी जड़ां रै तांतां
अळूझूं
नीं लाधै मज्ज गोड री असली जड़
नीं लाधै इण अणूता बोझाळू
काळ-खण्ड रौ टिकाऊ थम्ब
क’ जिण माथै चोट कर सकूं
तीखी तच्च कुआड़ी री
फगत दियावळौ होय
आपणां लटूरिया ताणूं
अर अेक माथै अेक आपघाती घाव
खाऊं
निसासां न्हाकतौ निरखूं आपणी मौत
पण अजतांई अणखूट वगत रौ बायरौ
म्हारौ अधघावळौ डील उडीकै
उडीकै थारी मुड़दा ल्हास
म्हारै खांधा रौ ठाणौ
बेताळ-पच्चीसी री छेहली माठ लग
अर कर् या जावै सवालां माथै सवाल
क’ किणी वगत रै पड़िलै
अेक नगरी ही फलाणै देस री
म्हनै कीं म्यानौ लाधै
फगत थूं म्हारां गांव
पूरै दमखम सूं जीवतौ व्हेजा
म्हारै च्यारूं म्हेर
म्हैं दरजै लाचार, खीज-बसू
अेकण फेर सोचण लागूं
किणी नूंबी अटकल री ईजाद माथै
थारी-म्हारी सिरोळी सांयत सारूं
पण
फगत अेक अदीठ मून—वंतळ रौ
लांबौ सिलसिलौ
थारै म्हारै बिचाळै जलमै...
अर आथमै...
नित-हरमेस—रोज-रोज!