फागण आयो फेर सूं, फूल उठी फुलवाद।

आखी परकत आपरा, मन री पूर मुराद।।

मन री पूर मुराद, याद हद आवणी।

मोर किलक्कां मांच, ललक्कां लावणीं।।

सुक-मैनां संवाद, जिगासा जागणीं।

लख सुमनां री लूम, लोयणां लागणीं।।1।।

बेलां, बिटपां, उपबनां, संकां आतम सोध।

रस भरियेड़ा रूप रो, पायो जांण पयोध।।

पायो जांण पयोध, मोद भरियो मनां।

समर करण सरजाम, काम करियो किनां।।

मंथर-गति मतिमान, मलय रो माल्हणों।

बिखरयो फिरै बसन्त, पंचसर पालणों।।2।।

मसती फागण मासरी, बसती बीच बिसेस।

थाप चंग पड़ती थटां, घटां धमाळ घणेस।।

घटां धमाळ घणेस, राग अनुराग सूं।

महकां उडती मिळै, भंवर रा भाग सूं।।

गहकै कळियां गात, प्रात किरणां पखै।

हरसै मोहित हिया, रंच धी ना रखे।।3।।

सखी सहेली सुरभियां, लियां फिरै घण लोच।

नासां दपट निवाजणीं, समर साजणीं सोच ।।

समर साजणीं सोच, बिमोच बिदारणीं।

उर भरियां आळोच, संकोच संघारणीं।।

गंध-वाह गळ-बाथ, सनाथ सकारणैं।

मनमथ बित्त अमाप, प्रताप प्रसारणैं।।4।।

महकां री मन्दाकिनी, उमगी जग में आज।

अंग-अंग ऊमाविया, रंग थनैं रितु-राज।।

रंग थनैं रितु-राज, साज घण सोहणां।

मुगधां रै मन मांय, सनेह समोहणां।।

तू रितुवां सिरताज, समाज सुहास रो।

रसिक कान्ह रो रूप, भूप सुख भास रो।।5।।

कुसुमाकर थारी किसी, क्रतवारी जग काज।

दाझी बिरंहां री दुनीं, इण रो कौण इलाज।।

इण रो कौण इलाज, राज रै रीझतां।

लावै प्रीतम लोग, बिरह-जळ भीजतां।।

होळी नै गणगोर, हुवै घर आवणां|

पूगै समंदां पार, पेम रा पावणां।।6।।

परकै होळी पूजतां, धड़क धूजतां हीव।

बालम रिया बिदेस में, जळ्यो घणेरो जीव।।

जळ्यो घणेरो जीव, अतीव उदास हो।

सहियां तणैं समूह, अमित उपहास हो।।

गुमियोड़ो सो गांव, गळी गळियार में।

आयो धीरज अंत, बसंत बिहार में।।7।।

मंजरियां आंबां मथै, भरियां मुगधा भाव।

मधु संचै मोमांखियां, तियां हियां घण ताव।।

तियां हियां घण ताव, अनंग अमाव सूं।

चीत हुवै बेचैन, अन अणराव सू।।

सांईनां नंह साथ, बात किसड़ी बणीं।

खटकै हिवड़ै खास, सेल की सी अणीं।।8।।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : बद्रीदान बागोड ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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