अब सांस बूझै लागी है

हरेक आवाजाही रौ हिसाब

अर म्हारै कनै नीं है

कोई ठीक-सौ ऊथळौ

थारै जावणै पछै अेक आस बाकी ही

कै आपां मिलसां कदै

थारै अेक ऊथळै सूं अब जदै

वा आस टूटगी

तौ पछै सवाल है कै क्यूं नीं टूटै

सांस रौ तागौ, कांई उडीकै

पण नीं, इण आसविहूणाई नै

इण दुख, इण अणमणास नै

जीवणै सारू सही

जीवणौ तौ पड़सी रिंकी टेलर!

स्रोत
  • पोथी : रिंकी टेलर ,
  • सिरजक : कुमार अजय ,
  • प्रकाशक : एकता प्रकाशन
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