मनडो बिलख बिलख’र
आधो हूग्यो
जद थारो मेल म्हारै स्यूं छुट्यो
थू म्हारौ बेली
थू म्हारौ हेताळू
मन पूछ्यो
बिछोह ही होणो हो तो
मिलणों कीकर हुयौ!
बात सुण बीं री
मैं चिंत्या में पड़ग्यो
सोचतां सोचतां
दिन भी ढलग्यो
रात भी बापड़ी
म'नै थोड़ी उडीकै ही
बा भी आप रो धरम निभा’र
टेम स्युं ही चली गई
बैठयां बैठयां
करमड़ै में बात आई
आपा कैवा चाँद अर सुरज भाई-भाई
पण अे तो कदी मिलै ई कोनी
अेक नी जावै तो दूजौ आवै कोनी
पाछै भी दोन्या को नांव सागै आवै
कोई भी अटूट जोड़ी
चाँद अर सूरज कहावै
मनड़ो सायंत हो ग्यो
म्हारै सवाल रो जवाब मिल ग्यो
म्हैं म्हारै बेली नै समझायो
प्रेम खातर मिलणों
जरुरी कोनी बतायो
प्रेम बो इज महान हुया करै
जको आप स्यूं ऊपर उठ’र
पर हित में खुद नै खपा दिया करै।