बैठ बात करां

घणैं दिनां सूं सोचूं

म्हारी आनन्दी!

कै सांच उगळूं

दुनियां नै बतावूं

कै म्हैं थारौ

सोसण कर्‌यौ है

थांरी ऊर्जा सूं

सुरसत रौ

भंडार भर्‌यौ है

थूं खपती रैयी

घर-धंधै

म्हैं चोरतौ रैयौ

थारौ औसाण

रोपतौ रैयौ

कविता रौ बिरुवौ

थारै औसाण री

जमीं पर

अेक अचंभौ और

कै खाद थूं बणी

इण बिरुवै री

टेमोटेम

अर आज

लांठौ रूंख बणग्यौ

म्हारी कविता रौ बिरुवौ

थारै पाण

के जाणै बापड़ौ

जग अणजाण

कै इण री जड़्यां तळै

गूंछळो मार्‌यां

बैठी है थूं मून

जाबक मून!

अब कठै सोधूं थनै

म्हारी आनन्दी!

थूं तो

माटी में रळगी

इण जग नै

कीकर दिखावूं थनै?

कांईं सबूत द्‌यूं

कै अै कविता

म्हारी कोनी?

स्रोत
  • पोथी : आ बैठ बात करां ,
  • सिरजक : रामस्वरूप किसान ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै