हंसे लोगड़ा अर रोवै घर
क्यूं मांड्या आंसू रा आखर
रोट्यां रा हा किस्या रोवणा
भोळा! थूं क्यूं गयो दिसावर
सेजां सिलगै, मरवण तरसै
मनभरिया! आ बाथां में भर
बिलसण री रूत ओ जोबनियो
खीणै खिण—खिण झूरै झर—झर
कांई काढ्यो रूत में जाकर
कांई करसी बेरूत आकर
म्हांसूं बेसी किस्मत वाळा
अै पांखीड़ा, जीव—जिनावर
मन मांगै जद जी बिलमावै
तन जुड़वावै चूंच मिलाकर
जिंदगाणी बाजी चरभर री
चाय अणभरी, जोबन अणचर
झाड्यां पाक्या बोर पेमली
क्यूं तरसावै चखबा खातर
श्याम पिया! इब थारै रंग में
रंग दै म्हारी कोरी चूनर।