आधो सावण बीत ग्यो है

पण होई कोनी है हाल तक

बिरखा थार मैं

जद भी पड़े है

बिरखा री पै’ली बून्द

आय’र ईं री झोळी में

चोस लेवे है थार

बी बून्द ने एक सेकंड में ही

तीसै मुसाफर री ढाळ

पण जद भी तिस कम होवै है

इण री

तो उठे है अेक मैहक

ईं री माटी सूं

मूंडो बा’र काढ़ण लागै है

सिणीया, आक, अर फोग,

काढ़ै है मुंडो ज्यूं

सूसीयो आपरे बिल सूं।

जद कदै बरस जावै है बादळी भरपूर

लारै ही निकळ आवै तन सुहावती

तिड़की

अर उणी तिड़की में

मिरगा भी ढूकै घूमण

तो इयां लागै है जियां

कमल जिसे बदन पर

ओढा दी होवै चूदंड़ सोने री

अर जड़ दिया होवे बीं पर

मधरा मधरा मोती।

स्रोत
  • पोथी : साहित्य बीकानेर ,
  • सिरजक : सुनील कुमार लोहमरोड़ ‘सोनू’ ,
  • संपादक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : महाप्राण प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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