आयो अस्यो जनता को राज संभळ क चालो। 
दन दूणो मंहगो होयो नाज संभळ क चालो।

कभी बाढ़ अकाल कभी भारी जी 
कभी टिड्यां की पड़ती गाज संभळ क चालो।

बाई का ब्याऊ का मूळ देणा बाकी जी- 
दस बरसां सूं देता आर्या ब्याज संभळ क चालो।

धाम धूम धूधांडो धधक्यो जी 
काळो पड़तो दीखे अब ताज संभळ क चालो।-

नीचे जावां तो सापां को डर छ जी- 
ऊमर बैठ्यिा चहूं ओर बाज संभळ क चालो।

घर आंगणियां सूं भीड़ बढ़ी भारी-जी- 
सकडी सडक्यां होई महाराज संभल के चालो।
स्रोत
  • पोथी : कळपती मानवता मूळकतो मनख ,
  • सिरजक : रामदयाल मेहरा ,
  • प्रकाशक : विवेक पब्लिशिंग हाऊस, जयपुर
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