थे म्हारी निजरां मांय

घणा मीठा अर अणमोल हो

जिनगाणी मांगो

मना नीं करूं

थे सांसां री सौरम

साच कैवूं…

थांरो हुवणो ईज

म्हारो हुवणो है

कदै-कदैई तो सोचूं

जे थे नीं होंवता

तो म्हारै हुवण रो कांई मोल हो!

स्रोत
  • पोथी : मन रो सरणाटो ,
  • सिरजक : इरशाद अज़ीज़ ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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