सांच री आंच

सिळगै सदा

जींवती झळ

धूजै अर भंवै

पण दीसै नीं

झूठ रो डंको

बाजै देस दिसावां

सूणीजै हाको

फाङै बाको

सांच री आंच लखावै

जाणै आयगी

सांच नै आंच।

जङ हूवै सांच री

अर हूवै धङ

सांच रा पगल्या

सैंचनण

झूठ बीजूको

धोकै धोको

साव चानणै

सिरजै माया

धङ माथै री

धारै काया

सांच जीवै

अर पीवै

सांस री सोरम।

झूठ री सींव

साव सिराणै

झूठ री नींव

सांच ही जाणै

आभै रै अंबार

झूठ रा पारावार

निबळो निंवै नीं

तणै अर खुरै

खिंडै अर झूरै

सबळो सांच

राखै जांच

पुरै अर टुरै

पग-पग बळै

पण भळै

अगन ढळै।

सांच री साख

पङतख नीं व्हैला

सोरम हूवै

पण दीसै नीं

साख संचरै

झरै

अर भरै

मिनखपणै रो मान

झूठ बिराजै

मंचां साजै

गाजै बाजै

झूठ बढै

अर चढै धजावां

कागद रा अे फूल

रळै धूळ

जङां मूळ

रैवै सूळ

साख रो साखी

सांच राखी

सौरम सांची।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : चैनसिंह शेखावत ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
जुड़्योड़ा विसै