सुणी सहेजी सन्तां सूं

अर सद्‌ग्रन्थां सूं

कै हंसतो-मुळकतो

सुन्दर सगुण

संस्करण धरा से लघूत्तम

अर सागै महत्तम भी

जे है कोई

तो खाली एक मां ही।

है बड़ी विचित्र विधातृ बा

एक अदीठ बून्द नै

धर कूख में

पाळै-रुखाळै दस मास

गुडोयां दृष्टि त्राटकी

काजळी अन्धकार में।

जठै दीठ पूगै

दिसा दीखै

खुद नै मरण रो खतरो

आंख काढै सामनै।

फेर भी बा

प्राणां सूं पोख प्राण

देवै जलम

धरा रै एक लाडले नै।

कारण-

एक अटूट अभिलाख

सवार बीं पर

कै जद

पावन पौथ बा

खोल नैण घूंघट

देखसी धरा

तो करसी नमन बीं आगै

गहराई सागरी

ढोळसी प्यार बीं रै पगां पर

ऊंचाई नगाधिराज री।

हर रात

प्रत्याशिनी मां बा

आंख्यां पसारै

देखती धू-लोक सामीं

अर सोचती हर घड़ी

कै प्राण में बीं पिंड रै

बसै-बिगसै

वाणी बीं मां री ही

व्याधि उपाधि सूं ऊपर उठी।

ही बा मां

दुहागण दुखियारण

पण ही सुमति सुनीति

तो कुमति हूं भी नहीं

उपज हूं भी तो बीं जमीं री,

जलम सकूं हूं भी तो बिसो

पण चाऊं इतो ही

कै बसावै लोक बो ऊपर नहीं

रसै-बसै बो धरा पर ही

हरै अन्धेरो मसाल बींरी अणथकी

तो राजी कुण नहीं?

कर स्नान ईं कल्पना सलिल में

कामना देह बींरी

नापती दुर्लंघ्य आकाश आपरो

बा उठती गई

बावनै भगवान-सी

अणथमी-अणरुकी।

जोड़ अन्तःकरण आपरो

समग्र धरा रै प्यार सागै

गद्गद् हुई

बणूं सुनीति सुरुचि नहीं

मां बणन रै कोड में

अतळ तळ में

डूबगी ऊंडी।

पण छिण दूसरै ही

आशा-छितिज सूं

कर सांय सांय उठी आंधी

गरद सूं ढकती दिसा

ढकती मनोकाश बींरो

बा कैण लागी

कै आखै विश्व में

हवा अबार रोगली क्वावली

हर आदमी रै पिंड में बसै

एकमात्र पद-पइसो

अर सुलभ बींसूं बाजार

रूप-रस-स्पर्श रो।

हर आदमी

हुयो चावै सुखी एकलो

रच्यो चावै प्रेत

चांदणी में-

प्रीत रो संसार आपरो।

इसी हवा में

तूं करै कामना ध्रू-पैळाद री

तो उपजी मोह सूं

भूल थारी

खरगोस रै सींग-सी,

बण सोच्यो है हकीकत

है सही।

जे पड़ै आंख मींच्यां

कूख सूं इसो कोई

अनाड़ी, उग्रवादी

बो चाल आगै

बधा ओझरो आपरो

ओढ निर्दयता-उपेक्षा

नीवड़ै अभिशाप-सो

जळै धरा, मरै मानखो

बो मुळकै मद रै शिखर बैठो

बजावै एकलो

अलगूजो आपरो।

अर दूजै कांनी

पेट रै गांठां दियां

झुग्गी-झूंपड़यां में पड़्या

धूजै हाथ

अर तरसै प्राण बांरा

मांगै खुणच दळियो

पाव आटो

का डील ढकण नै

झुगलियो फाट्यो-पुराणों।

पण बो देखै सुणै।

अर पत्थरी-काळजो

बींरो पसीजै।

जे पड़ै

पुन पूरा हुयोड़ो इसो

तो दोष कींनै

झगडूं. किसी कचेड़ी

करूं कठै मुकदमों?

कठै इमरती उडीक म्हारी

अर कठै सोच म्हारो पारदर्शी

जद दियो मनै करतार

जीवण चांदी-सो चमकतो

तो हूं सेऊं किंयां

कुधात काटीजतो?

बिना लडायां पूत इसड़ो

जावै किसी अणसरी

जे जलमूं बावळी बूच इसी

तो हूं दुखी

अर हुवै धरा दुखी सगळी।

जिको लजावै कूख

डुबोवै कुळ

मौत अर मांदगी

बीं सूं लाख आछी।

गोद में भरण गीगलै री

जाग उठसी

जे लालसा भळे ही

तो भरस्यूं मोदस्यूं गोद में

गीगो टसकतो

अनाथ रो कोई

हंसा बींनै अधघड़ी

काढस्यूं मन री रळी।

पूत जे इसो जलमै

जद उठै भूकम्प

धरा धूजै

दबै मानखो धसै टापरा

पड़ै आंसू

अर बिलखती चीख

बींधै हवा

का मन री रही।

कठै घर

कठै अन्न-गाभा

तकै मौत बीमार बूढा

बिलबिलावै भूख मरता

सिसकै अबोध टाबर बापड़ा

भय ऊतरै, भूत नाचै

उदासी ताळ दै

निराशा बधै।

मुळकती बस्ती मरघट बणै

धरा रै काळजै

अंगार ऊछळै

इसै में

पूत पइसै रो कोई

घण अन्धेरै

पैर पौसाक खद्दरी

बण स्वयंसेवी

जेब मुरदां री टंटोळै

ढूंढै खजानो घर भरै

तो रचै नरक कुजस रो बो

अम्बर में नहीं धरा पर ही

पड़ै पैलां आप बींमें

फेर ले पड़ै मां-बाप नै हीं।

इसो जे जलम दूं

तो डूबूं जींवती ही

जळ में नहीं

धरा री रेत में ऊंडी।

नाच उठ्यो याद पर बींरी

दुर्भिक्ष दो साल पैलां रो

देख्या बण हाथ काळ रा क्रूर

गळै पीड़ितां रै

दियां अंगूठो।

मेरै पटक्या काग

कुण बेटो, कुण बाप?

मानखो तिल बण्योड़ो

अर अकाळ तेली

मौत ऊरै तिल आंख मींच्यां

चलै दिन रात घाणी एकसी

दुर्भिक्ष री।

रूसग्या बादळ बटाऊ

हुया दुर्लभ अन्न-पाणी

झड़ै जीव पीत पात-सा

चलै आंधी अकाळ री

सण्णाट करती।

ऊँघ टूटै सरकार जागै

तो कैंप राहत रा खुलै

बंटै धान

कीं नगदी मिलै कठै ही

टाटी कठै ही तो सरकी कठै ही

बिगड़ी रा किसा बखाण

काटै टैम केई

साव चौगान में हीं।

फिरै माळा अफसरां री एकसी

अैलकारी चमचियां री

ले काळजै बै

उडीक चातकी

तेड़ता आंख्यां दिनां सूं

भाग सूं टूटग्यो छींको

सुणली शेषशायी

तो पूगसी लिछमी मतै ही।

मिल्या टीडी नै खेत हंसता

सरकार पुरसै बण भुवा

तो जीमण में कमी क्यों

चरै भतीजा?

लोटां रा लागै खळा

बोर् यां भरै

पण भुवा इसी भोळी नहीं

पांती बींरी पैल पूगै।

दूजै कांनी

पाव पाणी नै तरसता

बूंटा मानवी

जमीं रै चिपै

पण अफसरी आंख्यां आकाश कांनी

तो चालता जमीं पर

कद आवै निजर नीचै?

धरापुत्री सवाढ में सूती किती

अधूरा जणै

कुण मरै कुण जियै

जीपां रै हरड़ाट में

कुण सुणै टैम कींनै?

लाशां पर नींवां उठै

बणै बंगला, बाग लागै

चूमती आभो

किला-सी कोठ्यां उठै।

बसै प्राण में उफाण बोतली

डावै पासै प्रीत बैठी

संचालन-साहबी हाथ में

गेट खुलो

नुंईं कोठी हंसै सामनै।

जीतलियो अकाळ नै

ईं खातर

सरकारी ढोल बाजै

उच्छव री सृष्टि हुवै।

मुर्गा मर् ‌योड़ा

बकरा कट्योड़ा

मीठा अर चरका

सजै प्लेटां में

बोतळां डभ-डभ करती

हुवै ऊंधी गिलासां में

ठांव दळियै रा जीमै-पियै

हंसै-मुळकै

जाणूं किलो कोई कर फतै

इतिहास नुंवों रचै बै।

ढंग-बेढंगो याद कर

मन पाछो पड़ै बींरो

बा सोचै जणूं जे

लाडलो इसो कोई

तो समै पा बो

रूधसी कुर्सी इसी ही

इण कुमाणस कातरै सूं

लाख आछी फिरूं बांझड़ी ही।

गई दृष्टि

कवि, कळाकार, गीतकार कांनी।

फाड़ै कंठ रातभर

लेंवतो गुटका

डकारतो प्लेटां-

करै कळा उघाड़ी

हुवै आप नागो-

थकां कपड़ां।

कोड में कळा रै

कोढ केई पाळै-रूखाळै

बांरी हाजरी में सूकतो

मरै स्सोरो

अर सावळ जीसकै।

मत दिए दातार अळसीड़ो

अणूंतो इसो।

बिना तप

व्यास, शुक तो पड़्या कठै

आभा सूर, तुळछी अर नानकी

जे बिखरै

तो धरा धनवती

मां-बाप मर-मर जी उठै।

पण जुग कुकर्मी

सुणै कींरी?

संसै रै पारधी सूं

घिरगी भळे

चिन्तना री मिरगली बीं री।

याद आया बींनै

आततायी उग्रवादी

बै मिनख नहीं-

मैल मिनक्यां रा

मारदै हांचळ चूंघता

नींद सूता लाडला धरा रा

इसै कोढ़ नै हूं क्यों रूखाळूं

क्यों मां बणूं?

रचै हथियार?

करै बौपार

लडावै नहीं

लड़ावै मानखो

कृपा करै करतार

मत दिए इसो।

पून-पाणी बिगाड़ै

पूंजी रूखाळै

जण्यां सूं पैलां हीं

इसै सूं जी अमूंजै।

इसो कायर भी मत दिए

करै सम्बोधन सेनां नै

डरै आप मिनक्यां सूं

सुण्यां आवाज लुकै लैंघै में।

उठ्यो एक और सोच

कै जलमै म्हारै पूत ही

पण कद जरूरी

हू सकै पड़ै जलमणी

छोरी भी

पाळूं पढाऊं बींनै

पण राखतां पग जवानी में

जे हुवै बा मनचली

हवा सागै

तो लैर लूंठी बा

रोकी म्हारै कद रुकै?

हूं खोजूं कालेज में

बा चित्रपट में आंख सेकै

मनमेळू कीं मीत सागै।

का टैम टाळै

करै क्रीड़ा कठै ही

क्लब रै काळजै।

लौंकी रा लाख मार्ग

सही कुण बतावै

कींनै ठा पड़ै

कुत्ती कांजर री कठै ब्यावै?

जची बींरै

हुवै बांस बजै बंसी

रहूं कंवारी

अर करूं टाळ ब्याव री।

सोच में डूब्यो

मन गयो ऊंडो

जची ध्यान में

धरती स्वयं मां है

महत्ता बीं री मां बणन में।

हुवै जे चांद-सो

बांझड़ो पिंड बींरो

तो कठै जीवण

कठै पून-पाणी

कठै मानखो?

हूं धरापुत्री

क्यों मरूं बांझ

क्यों रहूं कंवारी?

लालसा मां बणन री

हुई बलवती पाछी बींरी।

बा बणी बहू

एक खेतीहर सूं बन्धी

ससुर बूढ़ो, सास बूढी

बापरै जठै रोटी पसीनै री

गाय घर में

काम दिन में

रात में नींद स्सोरी।

पण मन री ढिबरी,

बण बाट राखी जागती

स्नेह सूं तर कियोड़ी।

सोचै :

पूत हुवै तो बो

उतारै हियै हिमाचळ सूं

सुरसरि सेवा सरळता री

कर स्नान बीं में

धोवै मेल मानखो

अर करै काया ऊजळी।

फेर स्वाद आवै मनै

मैं पीड़ भोगी

हूं मां बणी।

यो यत् श्रद्धः

श्रद्धा फळी

घड़ी अनूठी एक बापरी इसी

पैठती पीड़ पंक में

बा भूलगी पून ताती

मां बणी।

हवा में झणकार फूटी

जाणूं परस पारस नै

बणी देह कंचन

काया कुधात री

फूटी मैक चौफेर

बंटी बधाई

धरा मुस्कराई

खोल भोगळ काळजै री।

दादै-दादी में बापरी

जिन्दगी नुंईं, ममता नुंईं

बां पसार् यां पग सौड़ सारू

बांटी बधाई

निकाळी बां मन री रळी।

खेलतो-कूदतो

पढतो-लिखतो

दिन लाग्यां-

हुयो जवान बेटो।

हींडग्यो दादो

हींडगी दादी

बरस पांच पेलां

पकड़ली राह पिता भी।

डगमगाती

मां-री देह टापली पर

राखती पग जराकुत्ती

अणचाही अणबुलाई

बैठी

टैम सूं पैलां सिसकती।

बण सोच्यो

बेटो कमासी

हूं देखस्यूं मुख बहू रो

हुसी शुरू घड़ी सुख री

बरससी इमी आंगणै

लागसी बूंटो स्नेह रो।

मोह रो बौपार लूंठो

आळस कठै लालसा रै

करली खड़ी बण

अट्टालिका सुख री

बिना ईंट —बिना गारै।

कोड बेटै नै भी कम नहीं

मां मांगसी पसीनों

तो देस्यूं खून मूंघो

अर जाणस्यूं साव सस्तो,

मुळकसी मां

चुकास्यूं मुळकतो

ऋण धरा रो।

पूत्त निकळ्यो नौकरी नै

संजो सपना अनूठा

पण नौकरी ही कठै

फाटगी फिरतां पगरख्यां।

पण घूस,

बेईमानी अर भ्रष्टाचार रै

त्रिभुज में किंयां बड़ीजै?

हुवै लूंठी सिफारिश

का लोट जेबां सूं ढुळै।

बींरो निश्चै

चोरी करूं

भीख मांगूं

अर हत्या खुद री करूं,

पड़ै प्राण देश खातर

तो मुळकतो आगै बधूं

पण पेट थोथो

काम चाऊं

बी.ए. अर नीरोग काया

जवानी ऊफणै

पण कुण सुणै?

खूंटी टंग्या

आदर्श ऊंचा

ठगौरो एक, भाग रो

दिखावतो धोरा चीणी रा

बींनै ले टुर् ‌यो।

बाहुवां में हेत बीरै

होठां पर बरसै इमी

पण आवै बैम कींनै

बसै काळजै बीरै

कस्यां कुंडळी

सरपणी विषैली।

डूबती अभाव में

ठगीजगी सरळता

सैज में पकड़ली बण

आतंक री ऊंधी दिसा।

छूटगी मां-छूटग्यो घर

खुद रो ठिकाणों

रैवास थिर।

आंख फाड्यां मां उडीकै

पण बाबो आवै

ताळी बाजै।

बा कींनै पूछै

कुण बतावै

उदासी बींरी दिन-दिन बधै।

तांण डोळां तेड़ आंख्यां

मां उडीकै

हुवै नैण गीला

होळी काळजै धुखै मतै।

देह दिन-दिन पड़ै पाछी

छिण एकेक बींरो

हुवै लम्बो

अर बीतै बरस-सो।

साळ री परनाळ पर

कागलो एक

बैठो जिंयां हीं

दृष्टा हुया नैण

उछल पड़ी रसना मतै ही।

कागा, सुगनदाता

सुणी, दीठ थारी

पूगै पितर लोक तांईं

हरकतां थारी समूची

हुवै अगम भाखी

उडै तूं अबार जे फुर करतो

तो हूं समझूं

बलवन्त म्हारो

हंसतो-मुळकतो

बाहुड़ै घरे बैगो।

उड रे डावड़ा!

जिमास्यूं तनै दही बाटी

एकर ही नहीं

जीस्यूं जितै रोज ही।

ऊमर में मैं कैयो आज ही

अर तूं करै अणसुणी

तो तैंसो कुण कृतघणी?

सैसा हुया नैण गीला

अर हुयो गळो-गळगळो

पण पत्थर सुणै

तो सुणै कागलो।

बो कदे हिलावै देह

कदे थिर करै

पण मजाल है

पगां नै तिल ही हिलण दै।

फूट्या बोल बींरा :

मरणजोगा कुण न्यूंत्यो तनै

जावै कीरै अणसरी

सूगला सरगरा

मर्‌यो मतै ही।

अधघड़ी में बार अट्ठारै

तूं बैठै उडै

पण अबार मैं कहदियो

तो कैयो कुम्हार

कद चढै गधै?

फूट्यो होठां पर बींरै

दीनबन्धु तूं हीं जाणै

हुसी कांईं अर बीतसी किसी

लिख्या कांकरा करम में

तो पल्लै बीर

बांधसी कुण अशरफी?

एक दिन पाड़ोसण एक

बैठी ओढती उदासी

अर कैण लागी :

बैनड़ी, बलवन्त थारो

राजी खुशी

पण मिलै किंयां

पकड़ीजगी लैण ऊंधी

हुग्यो उग्रवादी।

पुलिस-मिलट्री लारै फिरै

किंयां आवै,

कद मौको मिलै?

काढली अकल कण हीं

बणी मंथरा शिकारण

तो जाळ में

फंसी कैकेई

लप चिणा कदेई

तो काढली रात

दो घूंट पाणी पर कदेई।

पण राख प्राण हथाळी पर

इंयां बो

दिन किताक निभसी?

बैनड़ी,

अबै तो भरोसो एक मोटो

राखै तो रह सकै

लाज बो ही

नहीं तो करो जिन्दगी

रोंवतां पूरी।

कर गुरबत अधघड़ी

झाड़ आफरो आपरो

बा विदा हुई।

मां-रै तप री शिला पर

पड़ी बीजळी अचूकी

हुई चूर-चूर बा

मिलती रेत में निराशा री

पण पा ईल आस्था री

बा उड़ी नहीं रेत सागै

जमगी ही जठै ही।

सिंझ्या पड़ै दीप चसै

हिलै होठ माळा फिरै।

व्यसन रोज रो

चूकै नहीं एक दिन ही

रोटी एक टंक मिली

तो सही

पण आराधना अधूरी

जलमपत्री में बींरी

ओझल नहीं

आंधी अर बरसात में भी।

खा खीचड़ी बा डौढ कुड़छी

खाट पकड़ी आडी हुई।

पण चिड़ी नींद री

उड नैण नीड़ सूं

अणजाण दिस में जा लुकी।

पसरग्यो सोच बींरो

कै मोती चुगतो हंस म्हारो

रगड़सी चांच क्यों

बैठ करकां पर

घाल काग सूं धरमेलो

विषलै धुंवैं-सो।

कद सोची मैं

कै सपूत सिंघणी रो

खड़ो ढांढां में

नांखतो आंसू

डोका चरैलो।

पूत पारस रो

डूबसी पद-पोखरी में

तो बीं सरीखो

भागठोकी भळे किसो?

पण मनै

सोच अबै मरण रो

अर मोह जीवण रो

मरण सूं पैलां एकबार

भर निजर देखलूं बींनै

तो मानलूं मिली मुक्ति

करूं जीस्सोरो।

बा पत्ता समाचारपत्रां रा

तेड़ आंख्यां रोज बदळै

पण मर् यां में

अर पकड़्यां में

नांव बलवन्तो निजर नै मिलै।

मुतळब है बो जींवतो

पण बा जाग्यां,

कुण बतावै है कठै?

बा सोचै—भळे सोचै।

रात पड़ी

ढक बारणों

बा आडी हुई

का फुरकी सैसा

आंख डावी।

फूट्यो होठां पर अनायास :

फुरकी किंयां बावळी

अठै तो अगलो दियोड़ो

धिरै पाछो

संभै नहीं डील ही,

हाथ कांपै सरदी सतावै

तूंतड़ो एक

बो लाठी बुढापै री

बो ही कुण जाणै कठै रूळै?

दो ओरिया पुराणा

गळै भींतां पड़ै लेवड़ा

जे बरसग्यो रात नै

तो देखस्यूं दिनूगै डगळिया

पड़गी छात

तो दिनूगै लास म्हारी

कुचरसी कागला

का ठरड़सी कुत्ता।

बावळी तूं फुरकै फिजूल

पड़न दै अधघड़ी

कह बा आडी हुई

पण नींद आवै

फुरकै आंख बिंयां हीं।

गरज्यो आकाश एकर

तण्योड़ै तानाशाह-सो

पसरग्यो अन्धेरो

सामन्ती सन्ताप-सो

रह-रह बधै

कामातुरी कामना-सो।

नभ गंगा-

उतरी धरा पर नींद री

बण खोलदी गोदी अछोर आपरी

मोद सूं बींमें

बस्ती समूची सोई पड़ी।

पेड़ां पर पखेरू

घोंसळां में मौन बैठा

फड़फड़ावै होठ खोलै

ढक राख्या बचिया अजात पंखा

कांबळां काळजै री ऊपर दियां।

उठी माळा ली

करती राम-राम

बैठगी पाछी

रात आधी

नींद

पण आंखड़ी कुमाणस

फुरकै बिंयां हीं।

तरजनी सूं पींच बींनै

बण जीभ खोली

अठै गडै गूदड़ी डील रै

मंचली झोळी हुयोड़ी,

मत फुरक बावळी

बोढ मत चूंठिया

पड़न दे अधघड़ी

कैंवती बा

हुई भळे आडी

पण कठै कान जिद्दण रै

फुरकै बिंयां ही बद मरै

बा बोली :

आंख म्हारी

देणां तनै सुगन ही

तो पकड़

काळी कमाई पर खड़ी

अफसरी कोठी कोई

का कोई हवेली तिमंजली

तूं देख बठै

जाजमां रेशमी बिछ्योड़ी

सज्योड़ी बैठकां बेजोड़

काच रै पड़दै पर

नाचै जठै थिरकती टीवी

करै कोकिला कंठ रागळी

देख चित्रहार में

छवि बेलज्ज

अर्थ पीड़ा में बिकी।

भळे देख तूं

जठै पियै गळो गूंग में

पलक नाचै

आंख्यां ऊंध में

जीभ री दुर्दशा

ले बैठो स्वाद बींनै

टांग धूजै बिना चाल्यां

मारै हाथ हांफळा

पड़ी आडी

बेकार बोतलां।

बावळी

का पकड़ तूं भवन सत्संग

करावै आरती खुद री जठै

मोड मुस्टंड।

राखै मायाजाळ लम्बो

शिकार मतै ही फंसै

भूल आपो आपरो,

सेज सुख भोगै शिकारी

ले आसरो रूप रस रो।

लागै गुप्त दफ्तर बठै

मिलै टिगट

बैकुंठ रा जठै

अवसर पर आसी विमान

पकड़ो सीट आपरी

आगै स्वागत में

रम्भा उर्वशी

त्यार मिलसी।

तूं जा करै जी जठै

पड़न दे अधघड़ी

म्हारा हाड दूखै-

सिर कुळ।

सैसा सुणीज्यो

मां बारणों?

लागी आवाज सैंधी

वेग रह-रह उठै-बैठै

पण बलवन्तो कठै?

लागै जी अमूंजै मन भुंवै

खावै गोतो बो गूंग में

फेर भी-

कर दिया बण कान बींनै।

आंख और फुरकी

अर भळे सुणीज्यो

मां-बारणों?

अबकै बा भूल आपो

भूल दर्द गोडां रो

पटक परियां जिद्द झोकड़ी रो

उठी भच्

चास्यो दियो

हंस्यो चांनणों

लुक्यो अन्धेरो

रोप आंख्यां अचल

सांभती तूफान नै

धीरै-सै

खोल्यो बण बारणों।

मेल परियां

बन्दूक भोळो

दूबळै अर दूखतै

परमेसरी पगां पर

पसरग्यो बळवन्तो

महीनां सूं बिछुड़तो।

बळती बेल नै जाणूं

मिलग्यो पाणी धपटवों

पैलड़ी बरसात रो।

बापर् ‌यो बळ

बुझतै डील में करंट-सो

खुल्या होठ-खुली जीभ

फूट्यो हवा में

शब्द पुंज लड़खड़ातो

अरे बळवन्तो

अचम्भो छोड़ आंख्यां

उल्लास में बदळग्यो।

पसरगी मतै ही

भेळी हुयोड़ी

बाहुवां दूबळी

भरलियो बाथ में बां

श्रद्धा सागर में डूबग्यो बेटो

उफणती प्यार री धार में

डूबगी मां

हुयो बन्द बौपार आंसुवां रो

बैठगी मां बैठग्यो बेटो।

बोली मां :

लाल म्हारा

बता हाल कीं

झोळै में लुकौयै माल रो?

मां, ईं में रिपिया हजार दस

दो हथगोळा

अर कारतूस दस।

बेटा, माया भरी तैं

कीमती

पण मरै ईं सूं बेटो पछै

मरैली पैल मां

ही, जे करै सीमा सुरक्षा

तो जियै बेटो

जियै मां।

टिक्या हाथ बीरां

मां रै पगां पर

जमीं पर टिक्यो सिर

निकळी आवाज

बेबसी में

मां, माफ कर।

बोली बा :

तैं ली नहीं,

सुध-बुध मावड़ी री

देह आधी हुई

आंख्यां बैठगी ऊंडी।

थारै जलम सूं पैलां किती ही

सोचती रोज

जणस्यूं रत्न कोई

पा आलोक बो

धरा मुस्करासी

तो चेतना म्हारी

पूगसी कोड करती धू-लोक तांईं

पण तैं मनै सिणकी इसी

कै कल्पना री खीर म्हारी

हुई खारी जैर-सी

खावै नहीं कुत्ता

किचोवै क्यों कागला ही

म्हारै तीर रो मां

हो निशाणों,

चिड़कली री आंख दांईं एक ही

कै जीऊं मरूं चिन्ता नहीं

करूं कोड सूं पूरी

अभिलाख थारी।

बणूं देश री जंजीर में

कड़ी लूंठी फौलाद री

टूटूं भला हीं

पण मूडूं. नहीं

पण मां खेल तकदीर रो

उथपग्यो हूं रुळतो-भटकतो

धापग्यो कोसीस करतो

हुई दिसा धूमिल

उदासी में ढकीज्यो

भूलग्यो रस्तो

पण करमफूट्यै नै

भाग फूट्यो

मिल्यो कोई इसो

बोल्यो, दोस्त

हू उदास मत

करूं पूरी अभिलाख थारी

काढ ट्रेनिंग दो मास खाली

बण एरिया-कमांडर शौक सूं

भोग सुख सगळा

दे हुकम हाकमी

मौज कर तूं।

मां, हूं रचतो

किला आकाश में

बदळती पून सागै जा मिल्यो

फंसणो तो हाथ में हो

पण हुयो मुश्किल

बीं जाळ सूं निकळनो।

आवती हिचकी हर रात

सोचतो सिवा मां रै

और कुण करै याद?

ठैरती हिचकी

नींद में उतरती

जागती तस्वीर थारी,

बा पळूसती सिर

हूं भूलतो चिन्ता

बापरती पिंड में

नुंईं ताजगी।

मां, लियो किंयां ही

पण म्हारो ईं में कीं नहीं

भर अन्धेरै

ही जोत जागती तूं हीं।

कर हुकम

हूं करस्यूं बिंयां हीं

मरूं-जीऊं

निभास्यूं तूं कैसी जिंयां ही।

दियोड़ो डील थारो

शक्ति अनूठी

समझ मीठी

संस्कारी चेतना में

है थारी भर् ‌योड़ी

म्याऊं थारै सूं हीं

करै मिन्नी किंयां थारी?

हुई गद्गद् मां

बोली, पूत म्हारा

भूल्यो सुबह रो

जे सिंझ्या लियो पाछो

तो बींनै भुल्यो नहीं,

समझणों स्याणों।

अबै तूं बण हिरण

भाग हुळसतै मन

सूरज री उगाळी

पूग कोठी पुलिस हाकम री

कह दिए जोड़ हाथ

बात सगळी अणलुकोई।

बण पग छुया मां रा

बण हिरण भाग छूट्यो

पूगग्यो कोठी साब री

चीरतो अन्धेरो।

बन्दूक थाम्यां

खड़ा सन्तरी

हुयो सामनो

उगळदी बण

कथा समूची आपरी।

कैत्ता हीं बो हुयो कब्जै

भर जवानां सूं च्यार जीपां

आलियो अधिकारी

सागी ठिकाणैं।

घर घिर्‌यो

भीड़ बसती री खड़ी

खुल्यो बारणों

निकळी डोकरी

बोली हाथ जोड़ती :

हूं तो निमित्त खाली

है भारत मां असल में

मां ईं री।

पड़्यो नहीं

पण आखोड़्यो जरूर

ढब ऊंधी पकड़तो

लियो पाछो पकड़

भूल्यो टापरो आपरो।

हाथ म्हारा ओजूं

कातलै चरखो

सेकलै रोटी मजै सूं

हूं दाळ-दळियो

चूण दो टैम रो

जुटा सकूं सुख सूं।

धन री इच्छा नहीं

ले जा सकूं

अर पेट में पचा सकूं

धन मोटो म्हारो एक ही

कै देश री जंजीर में

बणै बेटो कड़ी फौलाद री।

सौगन गीता री

गुरुग्रन्थ री ईमान री

जे कूड़ भाखूं

तो कीड़ा पड़ै

हुवै फांसी मनै

बणूं गुनैगार

पृथ्वी री

परमात्मा री।

चोर इत्तो दोषी नहीं

मां चोर री दोषी जिती।

हूं सूंप थानै

पूत री उठती जवानी

लालसा

म्हारी पीड़ में उफणती

अबै हुई सुखी

निरवाळी नचींती

पूगगी सुरग

जाणूं जींवती ही।

पड़ी साळ में बन्दूक

पड़्यो झोळो

बै धरो कार में

हंसो, मुळको, टुरो।

करलियो सामान कब्जै

गड्डी देख लोटां री

झुक्यो हाकम पगां पर

बोल्यो :

मां, तूं चेतना धरा री

तूं मां, ईंरी ही नहीं

है मां, म्हां सगळां री।

बसै पिंड में थारै

थिर प्रीत ईं देश री

अर पीड़ आखै मानखै री।

ईंनै नौकरी मिलसी

सरकार री मनस्या इसी

मां, थारो खोळियो अजूबो

विधाता बींनै

धीरण सूं घड़्यो

थारै पगां पर लोटसी

सम्मान सरकारी

थारी डगमगाती झुंपड़ी पर

झुकै बंगला झुकै कोठी।

होठां पर बीरै भळै फूट्यो,

हुयो सम्मान म्हारो मोकळो

पूत म्हारो

सुबह रो गम्योड़ो

सिंझ्या लियो

ठिकाणै पाछो,

दीन्हों सूंप मैं

सही सलामत आपनै

ईं सूं बड़ो सम्मान म्हारो

भळे किसो?

टुरी जीपां

गयो बो सागै

बा हंसै मुळकै

जाणूं सौदागर बींरो

बेच घोड़ा आपरा

हुयो नचींतो।

बा गई पिछवाड़ै

हंसै बूंटा हंसै धरा

नील नभ में

भरती उडार

करती टी वी टूट्-टुट्

गीत गावै चिड़कल्यां।

स्रोत
  • पोथी : ओळभो जड़ आंधै नै ,
  • सिरजक : अन्नाराम सुदामा ,
  • प्रकाशक : आशुतोष प्रकाशन बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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