रींछ री खाल ओड्यां

समै

सदियां सदियां रा सिराणा सूंघतौ

चाल्यौ इज जावै है

पण कोई नै ठा कोनी

किण दिस?

नै क्यूं?

केई भूसागड़जी दरसणिया दाव

लगाय लगाय टुरग्या

अर इण री गत परखता परखता

खुद बिगतीजग्या।

कितरा हो करमां रा कीड़ीनगरौ

थूंड री अेक रूंबड़ी सूं थूं डाय

अदीठ पेट दाखल करै,

कितरा ही ओढाई रा रूखां माथै

ऊंधौ चढ

इंसानी ऊरबां रा मद-जाळा चूस

कोरै उसासां रौ छछौ अंबरा छोडतौ जावै।

सगळी चीजां

ठावौ-ठाव दीसै जद लग इज दीसै

पण इण री रमत-रीछीं री अेक रपट में

परलं रा पंख पसरता दीसै।

तौ धर रै धोरी में धीजै री सांस है

रींछ रै राज में इज मदारी रौ बास है।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच पत्रिका ,
  • सिरजक : नारायणसिंह भाटी ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा
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