कांई छै

बरसां सूं ऊभी भींत को

पछीत सूं सगपण?

ज्ये पगां में पसर’र

ठीमर बणाया रखाणै छै

घर की नींव।

यो कस्यो हेत छै

तीतर्‌यां को चमनी की लौ सूं

जीं कै ओळी-दोळी फरक्यां खा’र

‌अेक कै पछेड़ी अेक

हो जावै छै काळी सूम।

कुवां का पींदा सूं

अमरत भर लाबा हाळा कळस्यां

गळो फंसा’ भी

निभाता र्‌या छै बरसां सूं

कोई का पतियारा पै

तस मेटता रहैबा का खण।

म्हूं हमेस उतावळो रहूं छूं

पछीत बणबा बेई

तीतर्‌यां की नांई भळसबा बेई

मनचींती आंच में

अर लोठ्या-डोर की नांई

हज्यारूं बरस तांई फस्यो र्‌हैबा देबो

चाहूं छूं गळो।

फकत ईं लेखै

कै नूंवा रंग बिखरै

थारी जूण का चतराम पै

लोगदणी बतळावै छै या दनां

कै थारै-म्हारै बीचै मंडग्या

सगपण का मंडाण।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : ओम नागर ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ
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