अळूंच-अळूंच,थंनै भेलौ करियौ
थूं बणियौ कठै, समंद।
करूं गरभ धारण, भोग रै सारू
लजवंती साध, पूरीजै कोनी
कांमण बण, खलकूं धोरां-धोरां
पिघळूं म्हैं
थूं ढाळ-ढाळ म्हनै
लादूं कठै म्हैं?
जठै-जठै थूं कुदरत रा किंवाड़ भचेड़ै
उठै-उठै रैवूं हूं बिछियौड़ी
आभा सी तणियौड़ी
थारै पगां चालती-चालती
थारी मंजिल बण जावूं
‘क’ का कोडरा री भणत सूं
थूं म्हनै बांचणी चावै?
बांचणौ व्है, तो बांच बावळा।
म्हारी साथळां रा सिलालेख।
थारी म्हारी पिछांण
ऊंडी मत ओट, अबै
आगलौ पग राखैला कठै?
आगै फेर पगोथियौ कोनी
थंनै तेड़ती डूंगरां-डूंगरां फिरी
समदां-समदां तिरी
मिलणौ भेंटणौ कियां बैठै
थारा माथा में सूळां वाळौ सेवळौ, दर खोदै हौ
सावण भादरवै, आटां-पाटां आयौड़ी म्हैं
जे गैलौ चंवरियां रौ नीं झालती
तौ हाथी रा हाड,
भंवर म्हैं भांगती
थनै टुकियां में लुकाय
ढबीयौड़ी नदी माथै ढोलियौ ढाळती
ले कांघसी सू अळगौ मत जा कै—
थूं म्हारा परस सूं निसरै
नै म्हा तांई पूगै
कांन देय सुणै तौ
हिंजरता गिंडक री
अर मुल्ला री बांग
किणी न किणी सळा में अेक व्है जावै
म्हारा रूं रूं में चभीका उठै
क्यूं रैयगी रीती? गळबाथां प्रीति
मथ्थी व्हैती तौ माखंण बण जाती
गैंती झेल, लांबी भुजां रा तीखा तचैड़ां सूं
डील रा ढैपा रा ढैपा उखेल
गूंगी हूं
बाचिया दै, बातां फीटी कर
म्हैं आ मांडी बूक
पा-पा इण आड़ंग नै पांणी पा
तिरसौ रूप कंगवाय बणै है
तिरसी बेलां कदै फळै है?
जिण ‘सी’ रा डर सूं
अै गाभा पै’रिया
हेरतौ हेरतौ आजै
थंनै मिळ जावैला
अपांरा गांव मांय ऊगता जंगळ में
छाता मांय ईंडा देय, म्हैं फिरूंली नागी तड़ंग
थूं करजै कदीमी जुद्ध
टाबरां नै पाळण रौ
म्हैं अठी-उठी कबूड़ा उडावूंली।