नूंवी सदी रौ सूरज ऊगौ
पळकै किरणां
दुनिया पूगी आभै माथै
नाप नखतरां
पण, अजैई थारै आंगण
वै इज आखा, वै इज मूरत
वै सीरणियां
धुखतै छांणां, धूपां विचै
थांनां रै पसवाड़ै निकळै
आखी रातां।
ऊभा थांरै घर-आंगण में
भोपां-भरड़ा
गळी-गळी में
ठांसै-ठांसै मूरत थरपै
टी.बी. सूं मरयोड़ा
बाजै छत्राळा पण
भल मिनखां नै कुण पूछै,
गंगाजी घालै?
आखीजूंण रैया बेकदरां
टुकड़ै सारू
पाणी पीवण नै नीं मिळियौ
वै छत्राळा
चावै थांसूं
चिटक-चूरमां अवर मखाणां
वडै महीनां आवौ वां रै फेरी देवौ
पलाबंधी देवौ, जोड़ो हाथ इरक्यां
माथ झुकावौ,
करौ खाजरूं, दारू चाढ़ौ।
अर अै भोपां
रातां रै अंधारै आवै
ढ़ोल घुरावै
भाठै-भाठै मांय उतारै
हीण आतमा
भींचै दांत, किड़कड़ी हाथां बांटै
‘हा हा ही ही हू हू’ करता
खेळा नाचै
थांनै-म्हानै सैंग जिणां नै
कैवै– पूछौ!
दुखियारी लोगां री सारी पीड़ मिटावूं
बांझणिया नै दैवूं बेटा, संपत दैवूं
मांगो! मांगो!
मनवांछित इंछा पूरांला
दुखियारां रौ दूख मिटैला
पीड़ मिटैला
पूछौ, पूछौ सावळ पूछौ
नैड़ा आवौ
अै इज आखर पाछा वै खेळा अरथावै
मिनख बापड़ौ हांण-फांण छै
कांई कैवै
काढ़ लीगटी, नाक घसै अर नमतौ जावै
खमा! खमा! कर हाथाजोड़ी करतौ जावै।
अबकाळै है मोटी आफत
कांई करसा?
जीव भमै हैं मारग-मारग
कांई करणौ?
भोपां कैवै,
खेळा पाछी झट खळकावै
खेजड़-खेजड़,
बावळ-बावळ खीलां ठोरां
कै थरपावां थांन, चढ़ावौ चाढ़ां
इण पड़पंचां मांय मिनखड़ौ मरतौ जावै
कुण पूछै हालात
समै सूं डरतौ जावै
अंतर आळी रीस, होठां में दब्योड़ी
आंख्यां ऊगै खार
हळाहळ पीतौ जावै।
पीढ़्यां-पीढ़्यां नहीं बतायौ
मारग भोपां
काळी धार रुळाया सबनै
थांन थरपिया
कोरी थ्यावस, सुख रा कोरा सपना दीना
अगलै भव रौ मारग ऊजळ
नहीं बतायौ
जीव-जिनावर जिम ई यां नै
खूंटै बांध्यां
चमकाऊ घेरा रै ऊंणै-खूंणै मांही
अंधारै में नाच नचाया, सदा डराया।
सदी बदळगी,
तोड़ो अै चमकाऊ घेरा
कोरी कारां में मत बांधो ऊजळ आदम
रैवण दो मिनखापौ, डर नै आगो बाळौ
विगत काळ री लांबी लैणां
आगी राखौ
अपणापै रै मन-मिंदर में
जोत जळावौ
कदास! इण भव सारू
जूंण जिनावर री टळ जावै, आदम मुळकै।