हुयगी धूड़

आखी उमर

लोगां रो मूंढो

जोवण मांय

नीं बैठा सकी

म्हैं म्हारो साज

नीं सोध सकी

म्हारो साचीलो सुर

करतो जको तिरपत

म्हारो अंतस

ठारतो

दूजां रो काळजो

अबै तो

आप रै इण

साचीलै सुर बिना

आखी जूण म्हनैं

बेसुरी होवती सी

लखावै है।

स्रोत
  • पोथी : कंवळी कूंपळ प्रीत री ,
  • सिरजक : रेणुका व्यास 'नीलम' ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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