अेक
सगळा ई कैवै कै
साच नैं आंच कोनी
पण, आ भी साच है कै
साच कोई बोलै कोनी
साच कोई सुणै कोनी
केई नैतिक मोल अर सिद्धांत
जिका पोथ्यां में मांड मेल्या है
जिणरो वाचन
रात-दन संत-महात्मा करै है
भगत अर धरम रा रुखाळा
वांरै खातर मरणै-मरणै लागै
जिण रा प्रचार सारू
लाखूं फूंक नांखै
वै ईज जद खुद री बारी आवै
तो भटक जावै
अर साच मानणै सूं नट जावै
उपदेस दूजा सारू आछा लागै
खुद सारू भूंडा व्है जावै
मिनख नैं कुण समझ पावै!
दो
केई बारी
साच बोलणो खतरनाक व्है जावै
अर साची राय देवणो
जीव को जंजाळ बण जावै
तो फेरूं मिनख कांई करै!
कै तो वो
बोलणै माथै पाबंदी लगाय देवै
कै सुणणो छोड देवै
पण, अै दोनूं ई बातां
आपणै बस री कोनी।
आ अेक हकीगत है कै
आपां रैवां नीं रैवां
जगद रो कामकाज थमै कोनी
पण, जीवतां
माखी गिटीजै कोनी
आ अेक सगळां सारू
अजब मजबूरी है
तो फेरूं
मिनख कांई करै?
ओ अेक ‘यक्ष प्रश्न’ है
जिको सदीव जीवतो रैसी।