लो, फेरूँ लाग्यो छै-बुलावो,

छोटा, मोटा, सभी ऊँदरा कै।

सुणी छै-बल्ली की पगवाळ,

घर की पोळ मै।

बलां का मूंडा पै आ-आ'र

झाँक रिया छै-गजानन्द का वाहन,

फाँक रिया छै-सबदां का तीर-

जस्यां बूंदां बरसावै छै सावण।

उगणी सूं आयो-बूढो फाबणो

नूचे छै खम्भ,

बल्ली सूं लड़बा को

कस्याँ करूँ सुभारम्भ!

लारां लाग्यो छै अेक मौट्यार ऊँदरो

जीं नै तीखाया छै दाँत।

गरबा'र मारै छै बूम

अेक ही झटका मै

काढ़ दूंगो, बल्ली की आँत।

म्हूँ छूँ-थाँ की लार

घबराओ मत-थरथा राखो-

बाँध'र मानूँगो-घण्टी

बल्ली का पाछला पावाँ मै-

जो थें रोकल्यो ऊंकी चाल नै।

सभी ऊँदरा मै

भै घणो

सभी चावै छै-

आगे करबो बूढा ऊँदरा नै।

स्रोत
  • पोथी : थापा थूर ,
  • सिरजक : गौरीशंकर 'कमलेश' ,
  • प्रकाशक : ज्ञान-भारती प्रकाशन, कोटा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण