अकलवानां अेक जूनो कानून जतायो, जिण सूं जाणी

अेकली कबर थारी आखरी सेज बणै जींसूं पैलां,

जे तूं थारी समसुत आतमा नैं जीवण सूं नईं निसरण देवै,

नैचै राख’र अेक पोथी लिखणी जिकी धरती रो जीवण बरणै,

जीवण रै घण बैवतै लारग रै छेंड़ै पूगती बखत

जद भायला तारी आंख्यां री पलकां नैं ढाकै—

अरै बीं बैळा ईं जगती रो बीर पुरस अवण दे

जिण खातर थारो जीवण रगत अर विचार अरपित हुवै।

जद थारो मस्तक सूनै अमर लोक में निंवै

जद तैं थारी लड़ाई लड़ली हुवै, बीं घोर आखरी बार में,

अरै, बीं बेळा दरखत हरियाळो झूमण दे

झूमकां में—जिको तौं खुद धरती में रोप्यो अर पोख्यो।

इण नीलै अरधगौळ नीचै, इण तारां छाये आकास नीचै

तीन बार में इण समझणै कानून नैं पाळ लियो

अेक लिखी पोथी, अेक पुतर म्हारी ठोड़ लेसी,

अेक दीपतो सुमक रूंख रोप्यो है।

स्रोत
  • पोथी : लेनिन काव्य कुसुमांजळी ,
  • सिरजक : कोन्स्टेन्टिन बान्सेन्किन ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा (जयपुर) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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