रूपक सूं फूठरी व्है जावै कविता

खुलै नूंवा अरथ रूपक सूं I

रूपक मन बिलमावै I

मनईज तौ रचै रूपक I

कदै मन बण जावै मिरगलौ

तौ कदैई जरख I

जरख, जिकी गिटक जावै टाबरां रा सपनाI

रूपक तिरै भाषा रै खोळियै

कठैई भरै मोहिली गळ-बाथ

तौ कदैई करावै राड़I

परोटणियां री दीठ ईज तौ रचै रूपकI

थूंई रचाया रूपक

निरवाळा’र नाचता I

नीं मिळै जिण मांय

मनगत री कोई छिब I

कोरै परोटियोड़ै लकबी-आंखरां सूं

कींकर नीकळै सबदां सूं सपना I

कदैई गीतां री ढाळ तौ

कदैई अजूबै आखरां ऊतरै थारा रूपक I

खोलै ‘सिमसिमी-बारणा’ अरथां रा I

थूं मोहिलै मन जोवै थारी स्रिस्टी I

नाचै अर नचावै I

गावै अर गवाड़ै I

परोट’र अेक आंगण

दूजौड़ै बारणै मांय वड़जावै I

हूं निरखूं थारी चाल I

थूं सपनौ तौ देखियौ हौ

मिरगलै रै रूपक रौ

कांई रच दीनी

हंसती हांफळां करती जरख ?

थारी जरख बड़गी काया रै कोठलियै I

वा रड़भड़ै अर हांडती फिरै मन रै पांण I

थूं गटळकै गटळक गटळक

सबड़कै सबड़क सबड़क सबड़का I

झुरै सपनीली आंख I

कैथ म्हारौ मोहीलौ- मिरगलौ ?

मिरगलौ तिरसौ तड़फा तोड़ै हौ

बळबळती धरती रै मांय I

अर जरख हंसै ही

बंगलां रै बारणै I

अबै कांई तौ गीत!

स्रोत
  • पोथी : आँख हिंये रा हरियल सपना ,
  • सिरजक : आईदानसिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : रॉयल पब्लिकेशन
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