रूठ मतां नित रैय मुळकती, रूठण में दरमैं नीं सार।

सुरता आळै-भोळैपण सूं, मतनां चींतै कूड़ विचार।

सिस्टी मेवै री बगिया, बोय मतां तूंबै री बेल।

मन-चींत्यो फळ मिलै जीव नै, सगळो माया रो खेल।

मिलै जगत रै भेळै सोक्यूं, सुरतां तूं क्यूं हुयी निढाळ?

बख में राख भावना मन री, बांध मतां पिंड रै पंपाळ।

जाण हुवै क्यूं बेकळखातै? क्यूं देवै मन रै अडवार?

रूठ मतां नित रैय मुळकती, रूठण में दरमैं नीं सार।

प्रेम-हेत रो सैंगठ तोड़्यो, गयी लूंकड़ी चम्माचाळ।

बैल बळी आपस में भिड़ग्या, करम कांकरो दियो उछाळ।

दबा पूंछड़ी ना’र भागतो, परै आंतरै तत्ता तोड़।

सैंगठ टूट्यां दाव लागग्यो, हाथां मरग्या बैल लपोड़।

प्रीत-नेह भावां सूं अळगै, सुणै कोयी दाद-पुकार।

रूठ मतां नित रैय मुळकती, रूठण में दरमैं नीं सार।

पंख फड़फड़ावै नित बचिया, भरणो चावै आप उडार।

दाब-चींथ राखै नित चिड़िया, हुया अजैंलग नीं हुशियार।

सीख मायतां री नीं मानी, अेक नीसर्‌यो आळो छोड़।

काग ताचक्यो घेटी मोसी, मौत आयगी सामै दौड़।

सीख परायी मानै बीं रा, समै फेर देवै उणियार।

रूठ मतां नित रैय मुळकती, रूठण में दरमैं नीं सार।

लड़ै कमेड़्यां दोय आपरै, आपस में मारै ही चूंच।

बीच आंगणै जंग माचग्यो, लड़णै में दोवूं आगूंच।

भेळा होग्या अबै कागला, बां दोवां नै लड़तां देख।

लड़ै जिको घाटै रो सोदो, समै राखै कीं री रेख।

गुत्थमगुत्थी देख कागला, पकड़ फंफेड़ै देवै मार।

रूठ मतां नित रैय मुळकती, रूठण में दरमैं नीं सार।

स्रोत
  • पोथी : जागै जीवन जोत ,
  • सिरजक : सत्यनारायण इन्दौरिया ,
  • प्रकाशक : कार्तिकेय प्रकाशन (रतनगढ़) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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