जबान सटै

खरो उतरतो

मिनख...

गिरगिट जियां

रंग बदळै।

मिनखां रै विश्वास सूं

धाप्योड़ो मिनख

मिनख नै पींचण लाग रैयो है

मिनखां री भीड़ में खोयग्यो

आज रो मिनख।

झूठ, कपट अर छल

जीणै रो सूत्र बणग्यो,

मिनख रो मिनखपणों

दोपारां री छियां बणगी...

अर मिनख बणग्यो

रोहिड़ै रो फूल।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : रतन ‘राहगीर’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति
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