फूटरी मंजिल री कळप में
आखता पगां री
नीं बैठै ताल
मन रै साथै
तौ कांई व्हियौ.?
दिमाग तौ साथै है नी.!
म्हनै तौ मंजिल फूटरी चाहिजै बस.!
अेक दिन पग लाय छोडियौ
सरीर नै
चायी ठौड़
पण औ कांई व्हियौ.?
इण फूलां लदिया बन री
मै’हक कठै गी.?
ओय.!
कांईं औ रोहिड़ां रौ बन है.?
छळावौ इण नै इज कैवै है.?
अबै होस आयौ
मै’हक तौ कठैई घणी लारै छूटगी
मन रै साथै
दिमाग कनै कद हूवती ही ताकत
खुसबू सूंघण री.!