रोही में जे डांड्यां

नहीं तो सही

गेला

बठै जावै तो है।

इण भोम पर

जे सिर ढापणनै छात

नहीं तो सही

तारां-भर्‌यो

आकास दीसै तो है।

इण चिलकती तावडी में

जे ठंडी पून

नहीं तो सही

तातो बायरो चेतावै तो है।

जिन्दगी में जे चैन

नहीं तो सही

परेसान्यां संदेस सुणावै तो है।

सभा में बैठ्या बोळा

नहीं तो सही

थारी म्हारी

कुबत तो जाणै है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : ब्रज नारायण कौशिक ,
  • संपादक : माणक तिवारी "बंधु"
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