कांई ठा

मिनख खावै आपरौ

अर गिंगरथ दूजां री गावै

म्हारै समझ नीं आवै

ईणसूं कांईं मकसद सधै

पण,

रोग

हरेक नै लाग्योड़ौ है

कूड़ै में भांग पड़ै जियां

जे अेड़ा मिनख

दूजां री चरचा नीं करै

तौ आफरौ नीं मिटै

नींद नीं आवै

रोटी नीं भावै

भाईड़ा!

आपां भी न्यारा कोनीं

अर सैंग

हीज कर रैया हां

स्रोत
  • पोथी : मिनख ,
  • सिरजक : विनोद सोमानी 'हंस' ,
  • प्रकाशक : विद्या प्रकाशन ,
  • संस्करण : 1
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