कुण देख्यौ रेत-रूप

मिल्यो किणनै रेत-रंग

ठौड़-ठौड़ दीसै रेत-राज।

मन रळियो बणी देह

काया री माया सारी

रळ्यो पाणी बण्या भाखर

परबत ऊंचा-ऊंचा

मिल्यो ताप

फळ्यो बीज, निपज्यो धान

सै कीं रेत रै ताण

पण रेत कठै

कठै धरती

तो कठै परबत

कठै काया

कुण देख्यो रेत-रूप

मिल्यो किणनै रेत-रंग

ठौड़-ठौड़ दीसै रेत-रात।

स्रोत
  • सिरजक : ऋतु शर्मा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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