पपड़ाया होंठ

अर

सूखो उजाड़ चेहरो

बदळ जावै

हंसी रा झरणा

अर

खुशियां री फूलवारी में

इण भांत रो कराओ अहसास

रेत में मधुमास लावण सारू

रेतीला धोरा

ओढ़ लेवे हरियाळी

सुरंगों लागै सावण

कामेतण

म्हानै खुद नै बड़भागण

कण्ठा सूं फूटै सुरां रो मिठास

रेत में मधुमास लावण सारू

मिनख

जिनगाणी में सिरजण सूं जुड़ै

आंपणी पूरी खिमतां सूं

रोसनी रो अहसास करै

मंज़िल रो पतियारो पावै

नुवा गैला बणावै

अेक अटूट बिस्वास सारू

रेत में मधुमास लावण सारू।

स्रोत
  • पोथी : पखेरू नापे आकास ,
  • सिरजक : इन्द्र प्रकांश श्रीमाली ,
  • प्रकाशक : अंकुर प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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