दिनड़ो घेरी में आयो, पीळो परभात छायो

सूरज री ऊगाळी पैलां जाग रे, अब तो जाग रे

दिनड़ो घेरी में आयो।

जाग-जाग धरती रा बेटा हळधारी किरसाण

सुहणी बेळा धरती मुळकै, कर थारो आह्वाण

सूरज री ऊगाळी पैलां जाग रे

दिनड़ो घेरी में आयो।

देख झूंपड़ी री डौढी पर मौठ करै मनवार

बाजरड़ी रा बूंटा लुळ-लुळ सादर करै सिलाम

भाईड़ा! सूरज री ऊगाळी पैलां जाग रे

दिनड़ो घेरी में आयो।

जाग्या पंख-पंखेरू सगळा, गावै मीठा गीत

श्रम सूं करले आज साधना, हुयसी थारी जीत

भाईड़ा! सूरज री ऊगाळी पैलां जाग रे

दिनड़ो घेरी में आयो।

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य निर्माता शृंखला भीम पांडिया ,
  • सिरजक : भीम पांडिया ,
  • संपादक : भवानीशंकर व्यास 'विनोद' ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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